Monday, September 19, 2016

जानिये सोना फसल उगाने वाली वाली आयुर्वेदिक खाद व कीटनाशक का जबरदस्त फार्मूला

आईये जानते हैं उन बेहद आसान और प्रसिद्ध फार्मूलों में से दो फार्मूलों के बारें में जिनकी मदद से हमारे भारत के पूर्वज खेतों से इतना ज्यादा मुनाफा कमाते थे कि उन्हें पैसा कमाने के लिए किसी और रोजगार या नौकरी की जरूरत ही नहीं पड़ती थी !

उनमें से एक खाद का नाम है “जीवामृत” खाद जिसे बनाने के लिए चाहिए होता है सिर्फ – भारतीय देशी गाय माता का गोबर, गोमूत्र, दही, दाल का आटा एवं गुड़।

इसके निर्माण के लिए – 60 किलोग्राम गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, किसी दाल का 2 किलो आटा, 2 किलोग्राम गुड़, 2 किलोग्राम दही को अच्छी तरह से मिलाकर मिश्रण बना लें और इसे दो दिनों तक छाया में रखें।

इसकी प्रयोग विधि इस प्रकार है – दो दिन बाद तैयार मिश्रण को 200 लीटर जल में मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव करें।

यह खाद खेत में असंख्य लाभप्रद जीवाणुओं को पैदा करती है जिससे खेत की उपजाऊ क्षमता बहुत बढ़ जाती है !

भारतीय देशी गाय माता के गोबर, गोमूत्र, दही, दाल के आटे और गुड़ से बनी यह खाद फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए बेजोड़ है और हर किसान को इसका असली चमत्कार देखने के लिए कम से कम 1 साल के लिए सिर्फ इसका अर्थात आयुर्वेदिक खाद और कीट नाशक का प्रयोग करके जरूर देखना चाहिए !

फसल के अलावा अगर आप किसी पेड़ के फलों की पैदावार भी बढ़ाना चाहते हैं तो उस फलदार वृक्ष के तने से 2 मीटर दूर एक फुट चौड़ा व एक फुट गहरा गड्ढा खोदकर, उसे खेत में उपलब्ध कूड़ा-करकट (सूखी पत्ती, खरपतवार आदि) से भर दें और अन्त में उस गड्ढे को जीवामृत खाद से अच्छे से गीला कर दें । इसके फलस्वरूप पेड़ में फलों की पैदावार खूब ब़ढ जाती है।

उपर्युक्त खाद के फ़ॉर्मूले के अलावा एक और चमत्कारी खाद का फार्मूला जिसके निर्माण के लिए सिर्फ 2 चीज चाहिए होती है, एक गाय माता का गोबर और दूसरा किसी मरी हुई गाय माता का सींग !

इस चमत्कारी खाद का निर्माण तो बहुत आसान है पर इसके निर्माण में लगभग 6 महीने लग जाते हैं, किन्तु इसके लाभ इतने चमत्कारी हैं कि कोई भी प्रयोगकर्ता आसानी से इसके निर्माण के लिए 6 महीने इन्तजार करने को ख़ुशी ख़ुशी तैयार हो जाता है !

इसे बनाने से पहले जानना जरूरी है कि आखिर गाय माता की सींग में क्या आश्चर्य जनक विशेषताएं है ?

वैसे तो प्रथम द्रष्टया गाय माता का सींग केवल एक रक्षा अस्त्र की तरह ही दिखता है लेकिन गाय माता को इसके द्वारा सीधे तौर पर अन्तरिक्ष से रहस्यमयी ऊर्जा मिलती रहती है अतः इसे एक प्रकार से गाय माता को ईश्वर द्वारा प्रदत्त दुर्लभ एंटीना माना जा सकता है। गाय माता की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी यह सुरक्षित बना रहता है। गाय माता की मृत्यु के बाद उनकी सींग के उपयोग से श्रेठ गुणवत्ता की खाद बनाने की परम्परा वैदिक काल से चली आ रही है। सींग से बनी खाद, एक मृदा उत्प्रेरक की तरह भूमि की उर्वरता बढाती है जिससे पैदावार खूब बढती है।

इसके निर्माण कि विधि इस प्रकार है – सर्वप्रथम सींग को साफकर उसमें ताजे गोबर को अच्छी तरह से भर लें। सितंबर अक्तूबर महीने में जब सूर्य दक्षिणायन पक्ष में हों, तब इस गोबर भरी सींग को एक से डेढ़ फिट गहरे गड्ढे में नुकीला सिरा ऊपर रखते हुए गाड़ देते हैं। इस सींग को गड्ढे से छः माह बाद मार्च अप्रैल में भूमि से निकाल लेते हैं। इस खाद से मीठी महक आती है जो इसके अच्छी प्रकार से तैयार हो जाने का प्रमाण है।

इस प्रकार मात्र एक सींग से तीन चार एकड़ खेत के लिए खाद तैयार हो सकती है। यह खाद खेत के लिए साक्षात् अमृत है और हर तरह से पौधों का पोषण करती है !

इसे प्रयोग कराने का तरीका – इस खाद को प्रयोग करने के लिए 25 ग्राम सींग खाद को 13 लीटर स्वच्छ जल में घोल लेते हैं। घोलने के समय कम से कम एक घंटे तक इसे लकड़ी की सहायता से हिलाते – मिलाते रहना चाहिए। सींग खाद से बने घोल का प्रयोग बीज की बुआई अथवा रोपाई से पहले सायंकाल छिड़काव विधि से करना ज्यादा बेहतर होता है ।

अब बात करते हैं आयुर्वेदिक कीट नाशकों की –

यहाँ पर प्राचीन भारत के कई जबरदस्त आयुर्वेदिक कीटनाशकों के फ़ॉर्मूले दिए जा रहें हैं, इनमे से जो भी आसान लगे उसे बनाकर आजमाया जा सकते हैं –

–पक्की मिट्टी के नाद में अथवा किसी पात्र में 40 – 50 दिन पुराना 10 लीटर गोमूत्र रखना चाहिए। इसमें ढाई किलोग्राम नीम की पत्ती को डाल कर इसे 15 दिनों तक गोमूत्र में सड़ने दें। 15 दिन बाद इस गोमूत्र को छान लें। इस प्रकार एक जबरदस्त कीट-नियंत्रक गोमूत्र तैयार हो जाता है।

–कम से कम 40 – 50 दिन पुरानी, 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें ! 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें।

–मदार की 5 किलोग्राम पत्ती, 15 लीटर गोमूत्र में उबालें। 7.5 लीटर मात्रा शेष रहने पर छान लें

– तंबाकू की 2.5 किलोग्राम पत्तियों को 10 लीटर गोमूत्र में उबालें और 5 लीटर मात्रा शेष रहने पर छान लें।

– नीम की 15 किलो पत्तियों को 30 लीटर गोमूत्र में 10 लीटर मात्रा शेष रहने तक उबालें। ठंडा कर छान लें।

प्रयोग विधि – एक लीटर कीटनाशक को 10 लीटर जल में मिलाकर पौधों में छिड़काव करें !

यह बार बार देखा गया है कि भारतीय देशी गौमाता और देशी नन्दी (बैल) का मूत्र जितना ज्यादा पुराना होता जाता है उतना ज्यादा उसकी गुणवत्ता अच्छी होती जाती है जबकि जितने भी मल्टीनेशनल कम्पनियों के कीट नाशक होते हैं उन सबकी एक्सपायरी डेट होती है जिसके बाद उनसे कीड़े मरते नहीं है !

कई बार किसान इन केमिकल युक्त खादों और कीटनाशकों के छिड़काव के दौरान उसे सूंघने या ओठों पर छीटे पड़ने से गम्भीर रूप से बीमार या मर जाते हैं जबकि इन आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स के साथ ऐसा खतरा बिल्कुल नहीं हैं !

शरीर को तो जो नुकसान है वो तो है ही उसके अलावा यह एक महा पाप भी है कि जगत माता अर्थात धरती माता को बार बार केमिकल युक्त जहरीली खाद और कीटनाशक से सींच कर धीरे धीरे उन्हें बंजर बनाना !

गाय माता से प्राप्त चीजों से बने इन आयुर्वेदिक खाद और कीटनाशक के लगातार तीन – चार साल इस्तेमाल करने पर खेत की मिट्टी एकदम पवित्र और शुद्ध बनने लगती है, मिट्टी में एक कण भी जहर का नहीं बचता है। उत्पादन भी पहले से काफी अधिक बढ़ जाता है। ध्यान देने की बात है कि फसल का उत्पादन हर साल धीरे धीरे बढता ही जाता है लेकिन खाद और कीटनाशक का खर्चा पहले ही साल से काफी कम हो जाता है!

(नोट – यहाँ पर दिए गए सारे फायदे सिर्फ भारतीय देशी गाय माता के गोबर, मूत्र और दही के हैं, ना कि वैज्ञानिकों द्वारा सूअर के जीन्स से तैयार जर्सी गाय, या भैंस के)

जोड़ों के दर्द में रामबाण है नीम्बू का छिलका

शयद आपको यह पता ना हो आपके घर में एक ऐसा फल (Fruit) है जो पुराने से पुराने जोड़ों के दर्द CHRONIC JOINT PAIN को ख़त्म कर देगा | जिस फल की हम बात कर रहे है वो कई तरेह के पोषक तत्वों से भरपूर है जैसे के :- magnesium, potassium, calcium, folic acid, , phosphorus, vitamin A, C, B1, B6 और इस फल का नाम है ‘निम्बू’ – Lemon | वैसे तो आपने निम्बू के फ्यादों के बारे जरुर सुना होगा लेकिन आपको किसी ने यह नहीं बताया होगा के नीम्बू का छिलका जोड़ो के दर्द से परेशान मरीजों के लिए वरदान है | आज हम आपको बताएगे कैसे आप नीम्बू के छिलके (Lemon Peel) से जोड़ो का पुराना दर्द भी दूर कर सकते हो |

सामग्री :-
• 2 नीम्बू के छिलके – Lemon peel
• ओलिव आयल – Olive oil

विधि :-
• पहले नीम्बू के छिल्को को ग्लास जार में डाल लीजिये और फिर उसमे थोडा सा ओलिव आयल डाल दीजिये और ग्लास जार को अच्छी तरेह बंद करने के बाद दो हफ्तों के लिए इसे वैसे ही छोड़ दें |
• दो हफ्तों के बाद आपका मिश्रण तयार है किसी भी रेशमी कपड़े में थोडा सा यह मिश्रण डाल कर प्रभावित जगेह पर लगायें तथा बैंडेज से कवर कर लें और पूरी रात इसे अपना काम करने दें |

Sunday, September 11, 2016

गोरख मुंडी बूढ़े में जवानी भर दे, आँखों को 6/6 और बुद्धि को प्रखर कर दे, सैकडों रोगों का अद्भुत रामबाण उपाय,

गोरख मुंडी (Sphaeranthus indicus) :गोरख मुंडी को संस्कृत में इसकी श्रावणी महामुण्डी अरुणा, तपस्विनी तथा नीलकदम्बिका आदि कई नाम हैं। यह अजीर्ण, टीबी, छाती में जलन, पागलपन, अतिसार, वमन, मिर्गी, दमा, पेट में कीड़े, कुष्ठरोग, विष विकार, असमय बालो का सफ़ेद होना, आँखों के रोग आदि में तो लाभदायक होती ही है, इसे बुद्धिवर्द्धक भी माना जाता है। गोरखमुंडी की गंध बहुत तीखी होती है।

गोरख मुंडी एक वर्षीय, प्रसर वनस्पति है, जो धान के खेतों तथा अन्य नम स्थानों में वर्षा के बाद निकलती है। यह किंचित लसदार, रोमश और गंध युक्त होती है।इसमें कांड पक्षयुक्त, पत्र विनाल, कांडलग्न और प्राय: व्यस्त लट्वाकार और पुष्प सूक्ष्म ‘किरमजी’ रंग के और मुंडकाकार व्यूह में पाए जाते हैं।

गोरख मुंडी के मूल, पुष्प व्यूह अथवा पंचाग का चिकित्सा में व्यवहार होता है। यह कटुतिक्त, उष्ण, दीपक, कृमिघ्न, मूत्रजनक रसायन और वात तथा रक्त विकारों में उपयोगी मानी जाती है। इसमें कालापन लिए हुए लाल रंग का तेल और कड़वा सत्व होता है।

इसका तेल त्वचा और वृक्क द्वारा नि:सारित होता है, अत: इसके सेवन से पसीने और मूत्र में एक प्रकार की गंध आने लगती है। मूत्रजनक होने और मूत्रमार्ग का शोधन करने के कारण मूत्रेंद्रिय के रोगों में इससे अच्छा लाभ होता है। गर्भाशय,योनि सम्बन्धी अन्य बीमारियों पथरी-पित्त सिर की आधाशीशी आदि में भी यह अत्यन्त लाभकारी औषधि है।

गोरख मुंडी के अद्भुत औषधीय गुण :
1. गोरख मुंडी के चार ताजे फल तोड़कर भली प्रकार चबायें और दो घूंट पानी के साथ इसे पेट में उतार लें तो एक वर्ष तक न तो आंख आएगी और न ही आंखों की रोशनी कमजोर होगी। गोरखमुंडी की एक घुंडी प्रतिदिन साबुत निगलने कई सालों तक आंख लाल नहीं होगी।
2. इसके पत्ते पीस कर मलहम की तरह लेप करने से नारू रोग (इसे बाला रोग भी कहते हैं, यह रोग गंदा पानी पीने से होता है) नष्ट हो जाते हैं।

3. गोरख मुंडी तथा सौंठ दोनों का चूर्ण बराबर-बराबर मात्रा में गर्म पानी से लेने से आम वात की पीड़ा दूर हो जाती है।
4. गोरख मुंडी चूर्ण,घी,शहद को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से वात रोग समाप्त होते हैं।
5. कुष्ठ रोग होने पर गोरख मुंडी का चूर्ण और नीम की छाल मिलाकर काढ़ा तैयार कीजिए, सुबह-शाम इस काढ़े का सेवन करने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है।

6. गले के लिए यह बहुत फायदेमंद है, यह आवाज को मीठा करती है।
7. गोरख मुंडी का सुजाक, प्रमेह आदि धातु रोग में सर्वाधिक सफल प्रयोग किया गया है।
8. योनि में दर्द हो, फोड़े-फुन्सी या खुजली हो तो गोरख मुंडी के बीजों को पीसकर उसमें समान मात्रा में शक्कर मिलाकर रख लें और एक बार प्रतिदिन दो चम्मच ठंडे पानी से लेने से इन बीमांरियों में फायदा होता है। इस चूर्ण को लेने से शरीर में स्फूर्ति भी बढ़ती है।
9. गोरख मुंडी का सेवन करने से बाल सफेद नही होते हैं।
10. गोरख मुंडी के पौधे उखाड़कर उनकी सफाई करके छाये में सुखा लें। सूख जाने पर उसे पीस लीजिए और घी चीनी के साथ हलुआ बनाकर खाइए, इससे इससे दिल, दिमाग, लीवर को बहुत शक्ति मिलती है।

11. गोरख मुंडी का काढ़ा बनाकर प्रयोग करने से पथरी की समस्या दूर होती है।
12. पीलिया के मरीजों के लिए भी यह फायदेमंद औषधि है।
13. गोरख मुंडी के पत्ते तथा इसकी जड़ को पीस कर गाय के दूध के साथ लिया जाये तो इससे यौन शक्ति बढ़ती है। यदि इसकी जड़ का चूर्ण बनाकर कोई व्यक्ति लगातार दो वर्ष तक दूध के साथ सेवन करता है तो उसका शरीर मजबूत हो जाता है। गोरख मुंडी का सेवन शहद, दूध मट्ठे के साथ किया जा सकता है।
14. गोरख मुंडी का प्रयोग बवासीर में भी बहुत लाभदायक माना गया है। गोरख मुंडी की जड़ की छाल निकालकर उसे सुखाकर चूर्ण बनाकर हर रोज एक चम्मच चूर्ण लेकर ऊपर से मट्ठे का सेवन किया जाये तो बवासीर पूरी तरह समाप्त हो जाती है। जड़ को सिल पर पीस कर उसे बवासीर के मस्सों में तथा कण्ठमाल की गाठों में लगाने से बहुत लाभ होता है। पेट के कीड़ों में भी इस की जड़ का पूर्ण प्रयोग किया जाता है, उससे निश्चित लाभ मिलता है।
15. गोरख मुंडी एक एसी औषधि है जो आंखो को जरूर शक्ति देती है। अनेक बार अनुभव किया है। आयुर्वेद मे गोरख मुंडी को रसायन कहा गया है। आयुर्वेद के अनुसार रसायन का अर्थ है वह औषधि जो शरीर को जवान बनाए रखे।

गोरख मुंडी से औषिधि बनाने का तरीका :

1.गोरख मुंडी का पौधा यदि यह कहीं मिल जाए तो इसे जड़ सहित उखाड़ ले। इसकी जड़ का चूर्ण बना कर आधा आधा चम्मच सुबह शाम दूध के साथ प्रयोग करे ।
2.बाकी के पौधे का पानी मिलाकर रस निकाल ले। इस रस से 25% अर्थात एक चौथाई घी लेकर पका ले। इतना पकाए कि केवल घी रह जाए। यह भी आंखो के लिए बहुत गुणकारी है।
3. बाजार मे साबुत पौधा या जड़ नहीं मिलती। केवल इसका फल मिलता है। वह प्रयोग करे। 100 ग्राम गोरख मुंडी लाकर पीस ले। बहुत आसानी से पीस जाती है। इसमे 50 ग्राम गुड मिला ले। कुछ बूंद पानी मिलाकर मटर के आकार की गोली बना ले। यह काम लोहे कि कड़ाही मे करना चाहिए । न मिले तो पीतल की ले। यदि वह भी न मिले तो एल्योमीनियम कि ले। जो अधिक गुणकारी बनाना चाहे तो ऐसे करे। 300 ग्राम गोरखमुंडी ले आए। लाकर पीस ले । 100 ग्राम छन कर रख ले। बाकी बची 200 ग्राम गोरख मुंडी को 500 ग्राम पानी मे उबाले। जब पानी लगभग 300 ग्राम बचे तब छान ले। साथ मे ठंडी होने पर दबा कर निचोड़ ले। इस पानी को मोटे तले कि कड़ाही मे डाले। उसमे 100 ग्राम गुड कूट कर मिलाकर धीमा धीमा पकाए। जब शहद के समान गाढ़ा हो जाए तब आग बंद कर दे। जब ठंडा जो जाए तो देखे कि काफी गाढ़ा हो गया है। यदि कम गाढ़ा हो तो थोड़ा सा और पका ले। फिर ठंडा होने पर इसमे 100 ग्राम बारीक पीसी हुई गोरख मुंडी डाल कर मिला ले। अब 50 ग्राम चीनी/मिश्री मे 10 ग्राम छोटी इलायची मिलाकर पीस ले। छान ले। हाथ को जरा सा देशी घी लगा कर मटर के आकार कि गोली बना ले। गोली बना कर चीनी इलायची वाले पाउडर मे डाल दे ताकि गोली सुगंधित हो जाए। 3 दिन छाया मे सुखाकर प्रयोग करे। इलायची केवल खुशबू के लिए है।

सेवन करने का तरीका :

1-1 गोली 2 समय गरम दूध से हल्के गरम पानी से दिन मे 2 बार ले। सर्दी आने पर 2-2 गोली ले सकते हैं। इसका चमत्कार आप प्रयोग करके ही अनुभव कर सकते हैं। आंखे तो ठीक होंगी है रात दिन परिश्रम करके भी थकावट महसूस नहीं होगी। कील, मुहाँसे, फुंसी, गुर्दे के रोग सिर के रोग सभी मे लाभ करेगी। जिनहे पेशाब कम आता है या शरीर के किसी हिस्से से खून गिरता है तो ठंडे पानी से दे। इतनी सुरक्षित है कि गर्भवती को भी दे सकते हैं। ध्यान रहे 2-4 दिन मे कोई लाभ नहीं होगा। लंबे समय तक ले । गोली को अच्छी तरह सूखा ले। अन्यथा अंदर से फफूंद लग जाएगी।

ध्यान रखें – ये पाचन शक्ति बढ़ाती है इसलिए भोजन समय पर खाए। चाय पी कर भूख खत्म न करे। चाय पीने से यह दवाई लाभ के स्थान पर हानि करेगी।

Friday, September 9, 2016

आंवला कैंडी बनाने की विधि।

आवश्यक सामग्री‬
आंवला – 1 किलोग्राम ,

चीनी – 700 ग्राम

विधि‬
(1) आवले ठीक से साफ़ करके उबलते पानी में डाल दें पानी इतना ही रखें की आवले केवल डूब जाएँ। जब आंवले ठीक से पक कर उनकी फांके फटने लगे तो आंच बंद करके आवलों को बाहर पानी से बाहर निकाल कर ठंडा होने दें।

(2) अब आंवलों को हल्का दबाकर उनके बीज निकाल दें।



(3) किसी स्टील के बर्तन में बीज निकाले हुए आंवले की फांके डालकर ऊपर से चीनी डाल दें। लगभग 12 घंटे बाद आप देखेंगे की सब चीनी घुल गयी है और आवले तैर रहे हैं। इसे अभी ऐसे ही पड़ा रहने दें।

(4) दो दिन बाद आप देखेंगे की आंवलों का आकार पहले से कुछ सिकुड़ गया है और वो बर्तन की तली में बैठ गए हैं।

(5) जब सारे आवले बर्तन की तली में बैठ जाएँ तो इन्हें किसी छन्नी की सहायता से छान लें और जब सारा पानी निकल जाये तो धूप में सुखा लें।

(6) धूप में इतना ही सुखाएं की आवले की ऊपरी सतह की नमी ख़त्म हो जाये ज्यादा सुखा देने से ये कड़े हो जाते हैं। अब दो तीन चम्मच चीनी और दो छोटी इलायची आपस में पीसकर इस पाउडर को सूखे हुए आवलों पर छिड़क कर ठीक से मिक्स कर लें। और कांच के बर्तन में सुरक्षित रख लें।

यदि चटपटी बनानी हो तो आधा चम्मच काला नमक तीन चम्मच चीनी चौथाई चम्मच काली मिर्च चौथाई चम्मच दालचीनी मिलाकर पीसें और इससे कोटिंग करें।

ज्यादा मात्रा में बनाये तो चीनी और आवले का अनुपात यही रखें। चीनी कम लेने से ठीक नहीं बनता और जल्दी खराब हो जाता है चीनी ज्यादा रखने से आवले का पानी ज्यादा निकल जाता है और बहुत कड़े बनते हैं।

आयुर्वेद में चीनी का तत्प्रय बुरा शक्कर से हैं। दानेदार सफ़ेद चीनी ज़हर के समान हैं।

Friday, September 2, 2016

जानिये हमेशा के लिये कैसे मस्से खत्म किये जाये

त्वचा पर बेडौल और रुखी सतह का विकास होना, मस्सों के लक्षण होते हैं। मस्से अपने आप विकसित होकर अपने आप ही गायब हो जाते हैं, पर इनमे से कई मस्से अत्याधिक पीड़ादायक होते हैं। यह तेज़ी से फैलते हैं, और इनमे से कई मस्से बरसों तक बने रहते हैं जिनका इलाज कराना ज़रूरी होता है।
मस्सों के आयुर्वेदिक / घरेलू उपचार

बरगद के पेड़ के पत्तों का रस मस्सों के उपचार के लिए बहुत ही असरदार होता है। इस प्रयोग से त्वचा सौम्य हो जाती है और मस्से अपने आप गिर जाते हैं।
एक चम्मच कोथमीर के रस में एक चुटकी हल्दी डालकर सेवन करने से मस्सों से राहत मिलती है।
कच्चे आलू का एक स्लाइस नियमित रूप से दस मिनट तक मस्से पर लगाकर रखने से मस्सों से छुटकारा मिल जायेगा।
केले के छिलके को अंदर की तरफ से मस्से पर रखकर उसे एक पट्टी से बांध लें। और ऐसा दिन में दो बार करें और लगातार करते रहें जब तक कि मस्से ख़तम नहीं हो जाते।
अरंडी का तेल नियमित रूप से मस्सों पर लगायें। इससे मस्से नरम पड़ जायेंगे, और धीरे धीरे गायब हो जायेंगे। अरंडी के तेल के बदले कपूर के तेल का भी प्रयोग कर सकते हैं।
लहसून के एक टुकड़े को पीस लें, लेकिन बहुत महीन नहीं, और इस पीसे हुए लहसून को मस्से पर रखकर पट्टी से बांध लें। इससे भी मस्सों के उपचार में सहायता मिलती है।
एक बूँद ताजे  मौसमी का रस मस्से पर लगा दें, और इसे भी पट्टी से बांध लें। ऐसा दिन में लगभग 3 या 4 बार करें। ऐसा करने से मस्से गायब हो जायेंगे।
बंगला, मलबारी, कपूरी, या नागरबेल के पत्ते के डंठल का रस मस्से  पर लगाने से मस्से झड़ जाते हैं। अगर तब भी न झड़ें, तो पान में खाने का चूना मिलाकर घिसें।
अम्लाकी को मस्सों पर तब तक मलते रहें जब तक मस्से उस रस को सोख न लें। या अम्लाकी के रस को मस्से पर मल कर पट्टी से बांध लें।
कसीसादी तेल मस्सों पर रखकर पट्टी से बांध लें।
मस्सों पर नियमित रूप से प्याज़ मलने से भी मस्से गायब हो जाते हैं।
पपीता के क्षीर को मस्सों पर लगाने से भी मस्सों के गायब होने में मदद मिलती है।
थूहर का दूध या कार्बोलिक एसिड सावधानीपूर्वक लगाने से मस्से निकल जाते हैं।
मस्सों पर अलो वेरा को दिन  में तीन बार लगायें। ऐसा एक सप्ताह तक करते रहें, मस्से गायब हो जायेंगे।
विटामिन मे को मस्सों पर लगाने से भी लाभ मिलता है। दुगने लाभ के लिए आप उसपर कच्चा लहसून भी लगा सकते हैं। दोनों को मस्सों पर लगाकर उसपर पट्टी बांधकर एक सप्ताह तक रहने दें। एक सप्ताह बाद पट्टी खोलने पर आप पाएंगे की मस्से गायब हो गए हैं।