Tuesday, February 9, 2016

सेब के सिरके Apple Cider Vinegar के अदभुत उपयोग

jसेब का सिरका सेहत के लिए बहुत फायदेमंद हैं, अनेक रोगो में इसका उपयोग किया जाता हैं, आइये जाने।

लीवर की सफाई के लिये –
एक – दो चमच (Tsp) सेब के सिरके को आठ ओंस पानी में मिलाकर सुबह सुबह लें| उसके बाद दिन भर फलों और सब्जियों का सेवन करें और खूब पानी पीयें| इससे लीवर से जहरीले तत्व बाहर निकल जाते हैं और लीवर जो के शरीर का अहम अंग है, सभी व्याधियों से दूर रहता है|

गैस और कब्ज के लिये –
एक चमच B(Tsp) सेब के सिरके को गर्म चाय में मिला कर खाने से पहले लीजिये| सेब का सिरका भोजन के विभाजन में सहायता करता है|

शरीर से जहरीले तत्वों को बाहर निकालने के लिये और शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने के लिये –
आधे चमच (Tablespoon) सेब का सिरके को एक कप नींबू पानी में मिलाकर हर सुबह लेने से शरीर से जहरीले तत्व बाहर निकलते है और शरीर की प्रतिरक्षा शक्ति मजबूत होती है|

बालों की रूसी को मिटाने के लिये –
सामान मात्रा में पानी और सेब के सिरके को एक स्प्रे वाली बोतल में डाल कर मिला लीजिये और इस मिश्रण को बालों पर शैम्पू करने के बाद स्प्रे करके प्रयोग कीजिये| 15 मिनट तक बालों को ऐसे ही रखें और बाद में पानी से धो लें| ऐसा कुछ दिनों तक दोहराएँ जब तक रुसी ख़तम नहीं हो जाती| उसके बाद अहतियात के लिए हफ्ते में एक बार यह प्रयोग करें इससे रुसी की समस्या नहीं होगी|

गले में खारिश को मिटाने के लिये –
एक गिलास गरम पानी में एक चमच (Tsp) सेब का सिरका, एक चमच (Tsp) लाल मिर्च और तीन चमच (Tsp) शुद्ध शहद को मिलाएँ और पी जाएँ| सेब का सिरका और शहद में जीवाणुरोधी गुण होते हैं जो जल्दी स्वास्थ्य लाभ में सहायक हैं और लाल मिर्च में कैप्सैसिन होता है जो दर्द में राहत प्रदान करता है|

फलों के रस में मिलाकर प्रयोग –
थोड़ी सी सेब के सिरके की मात्रा फलों के जूस में मिलाकर ली जा सकती है| इससे न सिर्फ जूस के स्वाद में बढ़ोतरी होती है बल्कि हमें जो सेब के सिरके की प्रतिदिन खुराक चाहिये वो भी मिल जाती है|

सेब के सिरके का प्रयोग सिर्फ ताजे जूस में करना चाहिये| बाज़ार में बिकने वाले पैक्ड (Packed) जूस में नहीं|

सीने में जलन की शिकायत होने पर –
जब भी आपको सीने में जलन की शिकायत लगे, एक चमच (Tsp) सेब के सिरके को पानी में मिला कर पी लीजिये| इस में थोडा सा शहद भी मिला सकते हैं|

त्वचा को निखारने के लिये –
मुँह साफ़ करने वाले कपड़े को सेब के सिरके में भिगो कर चहरे पर हलके से मलें| तेलीय त्वचा के लिए बहुत कारगर है| यह मुहासों में भी लाभदायक है|

लू (सुर्येदाह) से राहत के लिये –
सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से कई बार त्वचा लाल पड़ जाती है और सूज भी जाती है| इसको सुर्यदाह कहा जाता है| ऐसा होने पर, एक या दो कप सेब के सिरके को स्नान के लिये पानी में प्रयोग करें और दस मिनट के लिए शरीर को भिगा रहने दें| इस से त्वचा को शीतलता मिलेगी और त्वचा की पीड़ा कम होगी|

दातों को सफ़ेद करने के लिये –
दातों पर सेब के सिरके को मलें और पानी से कुल्ला करें. इस से दांत सफ़ेद होते हैं| नोट: ऐसा बार बार मत कीजिये क्योंकि इसका प्रयोग ज्यादा करने से दंत्वल्क (टूथ एनमेल) को नुकसान पहुंच सकता है|

घर में सफाई के उद्देश्य से प्रयोग –
बराबर मात्रा में पानी और सेब के सिरके को मिलाकर, उसमे दो तीन बूंदें पसंदीदा तेल (लैवेंडर आदि) डाल कर एक स्प्रे बोतल से घर में छिडकाव करें| घर में मोजूद अनावश्यक रसायनों से निजात दिलाता है| यह जीवाणुओं को मारता है जो घर में बदबू पैदा करते हैं|

खरपतवार नाशक के रूप में प्रयोग –
एक हिस्से सिरके में आठ हिस्से पानी मिलाकर स्प्रे बोतल से बगीचे में स्प्रे करके खरपतवार नाशक के रूप में प्रयोग कर सकते हैं|

पैरों की बदबू को मिटाने के लिये –
बाज़ार में बच्चों के पोंछे (Baby wipes) मिल जाते हैं उन पर थोडा थोडा सेब का सिरका डाल कर एक प्लास्टिकके बैग में रख कर रात भर के लिए फ्रिज में रख दीजिये. सुबह जरुरत पड़ने पर इनका प्रयोग करें|

जल जाने पर प्रयोग –
त्वचा के जल जाने पर जितनी जल्दी हो सके सेब के सिरके को जली होई जगह पर लगाएं| इससे दर्द से राहत मिलेगी| सेब का सिरका रोगाणुनाशक भी है| नोट: सेब के सिरके का प्रयोग खुले घावों पर न कीजिये|

चोट या खरोंच के निशान को मिटाने के लिये –
एक कप सेब के सिरके को गर्म करके इसमे एक चमच (Tsp) नमक मिलाकर खरोंच के निशान पर लगाइये| इससे निशान दब जाते हैं|

साँसों की बदबू को मिटाने के लिये  –
एक चमच (Tablespoon) सेब के सिरके को एक कप पानी में मिलाकर गरारे करने से सांसों की बदबू दूर होती है|

शेविंग के बाद प्रयोग –
बराबर मात्रा में सेब का सिरका और पानी को मिलाकर शेविंग के बाद चेहरे पर मलने से राहत मिलती है|

पेट की खराबी में प्रयोग –
जब भी आपको पेट अस्थिर या फूला हुआ लगे तो दो चमच (Tsp) सेब का सिरका, एक चमच अदरक का पानी, एक चमच ताज़ा नींबू का रस, आठ ओंस के बराबर सोडा वाटर और कुछ मात्रा में शहद को एक गिलास पानी में मिलाकर के लेंवें| आराम मिलेगा|

फलों, सब्जिओं को साफ करने के लिये –
फलों और सब्जिओं को खाने के लिये प्रयोग करने से पहले यदि सेब के सिरके मिले पानी में धोया जाये तो काफी हद तक पेस्टीसाइड (Pesticides) या केमिकल्स (Chemicals) के प्रभाव को कम किया जा सकता है|

व्यायाम की थकान मिटाने के लिये –
एक चमच (Tablespoon) सेब के सिरके को एक कप पानी में मिलाकर पीने से व्यायाम के बाद होने वाली थकावट से राहत मिलती है|

ऐंठन में राहत के लिये –
सेब के सिरके को यदि ऐंठन वाली जगह पर रगडा जाये तो ऐंठन की समस्या दूर होती है|

वजन कम करने के लिये –
आधे चमच (Tablespoon) सेब के सिरके को नींबू के रस में मिलाकर सुबह सुबह या फिर भोजन से पहले पीने से वजन कम होता है|

पिस्सूओं (पालतू जानवरों) से बचाने के लिए प्रयोग –
पालतो जानवरों जैसे कि कुतों आदि की त्वचा पर सेब के सिरके को स्प्रे करके और उसके सोने के स्थान पर इसका प्रयोग करके उनको पिस्सूओं से बचाया जा सकता है|
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This Is Why You Should Use Apple Cider Vinegar When You Are Washing Your Faceadmin Sep 13, 2015 This Is Why You Should Use Apple Cider Vinegar When You Are Washing Your Face2015-09-13T23:06:35+00:00 General 1 Comment
You may not be thrilled to use this smelly ingredient on your face instead of the beautiful scented face products. However, you should know there are many health benefits from using apple cider vinegar when washing your face. This vinegar can solve many terrible skin conditions such as pimples, acne, age spots, etc.

Apple cider vinegar is made with fermentation of pressed apple juice. The juice is fermented until the sugar transforms into vinegar. Don’t buy refined vinegar. Always choose raw unfiltered organic apple cider vinegar.


The cloudy stuff at the bottom of the vinegar bottle means that the vinegar is natural and of high quality. This part of the vinegar contains the minerals, enzymes, pectin and bacteria that are useful for the human’s body.

You should shake the bottle before usage, so that you consume all the beneficial elements of this amazing vinegar. You can also make your own apple cider vinegar, since this type of vinegar is useful for many other things besides your face.

Age spots and apple cider vinegar

The alpha hydroxy acids in this vinegar cleanse the dead cells of the skin and only the fresh and healthy cells remain. Apple cider vinegar contains large amounts of these acids, unlike the products found on the market. Moreover, the products contain only dead ingredients because these products are processed.

Apply apple cider vinegar with a cotton bud on the age marks. Leave it for half an hour and then wash your face. Repeat the procedure twice a day for the next 6 weeks.

Acne and pimples treatment with apple cider vinegar

Choose this natural product instead of the artificial pimple and acne creams. Even celebrities such as Scarlett Johanson use this vinegar to cleanse their faces and protect their perfect skin from pimples.

Malic acids inside of apple cider vinegar give this natural vinegar antibacterial, antiviral and anti-fungal characteristics. These characteristic enable this natural product to protect the skin from pimples and acne.

Apple cider vinegar is actually excellent against acne and pimples because it allows the skin to breath properly by opening the blocked pores. It also cleanses oily skin and balances the pH levels.

Apple cider vinegar and cleansing your face

Since this vinegar is very acidic you should mix it with water when applying on the entire face.

Mix equal amounts of water and apple cider vinegar. You can also add aloe vera gell or green tea into the mixture. As you get used to the vinegar, you can increase the amount of vinegar you use in the toner. Shake the mixture every time before you apply it on your face.

You should also test your skin’s reaction to the vinegar before applying it on your entire face. You can apply it under the chin to see how your skin will react.

Gently cleanse your face with this mixture using a cotton bud. Pay attention not to get the mixture near the eyes. If you have pimples, you will feel a small sting when applying the mixture on them. However, this is a good treatment for removing them.

First time you apply the mixture, wash your face with warm water after 5 minutes. If your skin does not react to the vinegar, don’t wash your face next time you use this toner. Apply this toner at night, since this vinegar can make your face sensitive if exposed to ultra-violet rays from the sun.

If you have acne on your back, you can use the water and apple cider vinegar for treating them. If you cannot reach your back with a cotton ball, use a spray bottle. After the vinegar treatment, use natural moisturizers such

स्वास्थय का राज़ – लौकी का जूस

स्वास्थय का राज़ – लौकी का जूस।

क्या आपको ऐसा कोई असाध्य रोग हैं जो सही नहीं हो रहा तो ये लेख आपके लिए रामबाण हैं।
आपको होने वाले किसी छोटे मोटे ज़ुकाम से ले कर बड़े से बड़े रोग तक का राज़। हम लोग हर रोज़ किसी ना किसी बीमारी से घिरे रहते हैं। हर किसी को कोई ना कोई बीमारी हैं।

क्या आप जानते हैं के बीमारी का अपना कोई वजूद नहीं हैं, वो तो बस हमारे स्वस्थ्य न रहने की एक स्थिति हैं, तो फिर हम अपनी बीमारी की जगह स्वस्थ्य की और क्यों न ध्यान दे।

ये तो आप जानते हैं के शरीर का 70 % हिस्सा पानी (द्रवय) हैं। ये हमारी बॉडी में 2 प्रकार के घोल के रूप में मौजूद होता हैं, एक हैं ALKALINE यानी क्षारीय और दूसरा हैं ACIDIC यानी अम्लीय। इसको आज कल की डॉक्टरी भाषा में PH Level बोलते हैं। इन दोनों की एक मात्रा निर्धारित हैं, जिसके अनुसार हमारी बॉडी 90 % एल्कलाइन होनी चाहिए और 10 % एसिडिक होनी चाहिए। जब हम जन्म लेते हैं तो यही कंडीशन होती हैं। मगर हमारे आज कल का आधुनिक खाना पीना ऐसा हो गया हैं के हम इस के बिलकुल विपरीत हो गए हैं, यानी एल्कलाइन रहा गयी हैं 10 % और एसिडिक हो गयी हैं 90 %, अब आयुर्वेद में भी कहा गया हैं के सब बीमारिया पेट से शुरू होती हैं, अगर हम अपने पेट को सही कर लेंगे तो सब सही हो जायेगा।

अब अगर हमें बिलकुल स्वस्थ होना हैं चाहे वो कोई भी बीमारी हो बस इस अनुपात को सही करना हैं। अब हम इस अनुपात को कैसे सही करे, बस इसके लिए कोई बहुत बड़ा काम नहीं करना हैं। सब से बड़ा एल्कलाइन का source जो हमारे किचन में हैं वह हैं लौकी (दूधी), तुलसी, काल नमक, सेंधा नमक, तो जिन लोगो को जोड़ो का दर्द, हाई बी पी, हृदय रोग, तेज़ाब की समस्या, या कोई भी समस्या हैं, पहले वो अपने इस पी एच लेवल को सुधारे, जिन से उनकी सब समस्याए स्वत ही समाप्त हो जाएँगी।

हर रोज़ सुबह उठ कर लौकी जिसे दूधी भी कहा जाता हैं , का जूस 5-5 पत्ते तुलसी, पोदीने, और सेंधा नमक या काल नमक डाल कर पियें। बस एक इस प्रयोग से आपकी बड़ी से बड़ी समस्या चुटकी बजाते ही खत्म हो जाएगी ।
जब आप ये प्रयोग 30-45 दिन करेंगे तो आप देखेंगे के वह बीमारिया जो आपके लिए असाध्य हो गयी थी वह तो ऐसे गायब हो गयी जैसे गधे के सर से सींघ।

आक आयुर्वेद का जीवन :

vआक आयुर्वेद का जीवन : इसको मंदार’, आक, ‘अर्क’ और अकौआ भी कहते हैं।

इसे हम शिवजी को चढाते है ; अर्थात ये ज़हरीला होता है . इसलिए इसे निश्चित मात्रा में वैद्य की देख रेख में लेना चाहिए ।

नामः संस्कृत – अर्क, राजार्क, विभावसु । हिन्दी – आक, मन्दार । बंगाली – पाकन्द । मराठी – रूई, रूचकी, पाठरी रूई । तेलंगी – नलि, जिल्ले, डेघोली, तेल जिल्लोड़े । फारसी – खरक, दूध । अरबी – ऊषर । अंग्रेजी – जाकजेन्टिक, स्वेलो वर्ट । लैटिनः – केलो ट्रोपिस जायजेण्टिका के प्रोसरि इत्यादि आक के विभिन्न भाषाओं के नाम हैं ।

आक चार प्रकार के होते हैं ।

१. श्वेतार्क अर्थात् सफेद आक,

२. रक्तार्क वा लाल आक,

३ लाल आक का ही दूसरा प्रकार है जो उंचाई में सबसे छोटा और सबसे विषैला होता है ।

४. पर्वतीय आक – यह पहाड़ी आक पौधे के रूप में नहीं, लता के रूप में होता है, जो उत्तर भारत में बहुत कम किन्तु महाराष्ट्र में पर्याप्त मात्रा में होता है ।

–आक के पीले पत्ते पर घी चुपड कर सेंक कर अर्क निचोड कर कान में डालने से आधा शिर दर्द जाता रहता है। बहरापन दूर होता है। दाँतों और कान की पीडा शाँत हो जाती है।
–आक के कोमल पत्ते मीठे तेल में जला कर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है।
— कडुवे तेल में पत्तों को जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है।
— पत्तों पर कत्था चूना लगा कर पान समान खाने से दमा रोग दूर हो जाता है। तथा हरा पत्ता पीस कर लेप करने से सूजन कम हो जाती है।
–कोमल पत्तों के धूँआ से बवासीर शाँत होती है।
–आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है। सूजन दूर हो जाती है। —-आक के फूल को जीरा, काली मिर्च के साथ बालक को देने से बालक की खाँसी दूर हो जाती है।
–दूध पीते बालक को माता अपनी दूध में देवे तथा मदार के फल की रूई रूधिर बहने के स्थान पर रखने से रूधिर बहना बन्द हो जाता है।
–आक का दूध लेकर उसमें काली मिर्च पीस कर भिगोवे फिर उसको प्रतिदिन प्रातः समय मासे भर खाय 9 दिन में कुत्ते का विष शाँत हो जाता है। परंतु कुत्ता काटने के दिन से ही खावे।
–आक का दूध पाँव के अँगूठे पर लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है।
–बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं। बर्रे काटे में लगाने से दर्द नहीं होता। चोट पर लगाने से चोट शाँत हो जाती है।
–जहाँ के बाल उड गये हों वहाँ पर आक का दूध लगाने से बाल उग आते हैं।
–तलुओं पर लगाने से महिने भर में मृगी रोग दूर हो जाता है।
–आक के दूध का फाहा लगाने से मुँह का लक्वा सीधा हो जाता है।
–आक की जड को दूध में औटा कर घी निकाले वह घी खाने से नहरूआँ रोग जाता रहता है।
जड़ के उपयोग–
— आक की जड छाया में सुखा कर पीस लेवे और उसमें गुड मिलाकर खाने से शीत ज्वर शाँत हो जाता है।
— आक की जड 2 सेर लेकर उसको चार सेर पानी में पकावे जब आधा पानी रह जाय तब जड निकाल ले और पानी में 2 सेर गेहूँ छोडे जब जल नहीं रहे तब सुखा कर उन गेहूँओं का आटा पिसकर पावभर आटा की बाटी या रोटी बनाकर उसमें गुड और घी मिलाकर प्रतिदिन खाने से गठिया बाद दूर होती है। बहुत दिन की गठिया 21 दिन में अच्छी हो जाती है।
— आक की जड के चूर्ण में अदरक रस और काली मिर्च पिस कर मिलावे और रत्ती -रत्ती भर की गोलियाँ बनाये इन गोलियों को खाने से खाँसी, हैजा रोग दूर होता है।
–आक की जड की राख में कडुआ तेल मिलाकर लगाने से खिजली अच्छी हो जाती है। ——-आक की सूखी डँडी लेकर उसे एक तरफ से जलावे और दूसरी ओर से नाक द्वारा उसका धूँआ जोर से खींचे शिर का दर्द तुरंत अच्छा हो जाता है।
–आक का पत्ता और ड्ण्ठल पानी में डाल रखे उसी पानी से आबद्स्त ले तो बवासीर अच्छी हो जाती है।
–आक की जड का चूर्ण गरम पानी के साथ सेवन करने से उपदंश (गर्मी) रोग अच्छा हो जाता है। उपदंश के घाव पर भी आक का चूर्ण छिडकना चाहिये। आक ही के काडे से घाव धोवे। आक की जड के लेप से बिगडा हुआ फोडा अच्छा हो जाता है।
–आक की जड की चूर्ण 1 माशा तक ठण्डे पानी के साथ खाने से प्लेग होने का भय नहीं रहता।
–आक की जड का चूर्ण दही के साथ खाने से स्त्री के प्रदर रोग दूर होता है।
–आक की जड का चूर्ण 1 तोला, पुराना गुड़ 4 तोला, दोनों की चने की बराबर गोली बनाकर खाने से कफ की खाँसी अच्छी हो जाती है।
–आक की जड पानी में घीस कर पिलाने से सर्प विष दूर होता है।
–आक की जड का धूँआ पीने से आतशक (सुजाक) रोग ठीक हो जाता है। इसमें बेसन की रोटी और घी खाना चाहिये। और नमक छोड देना चाहिये।
–आक की जड और पीपल की छाल का भष्म लगाने से नासूर अच्छा हो जाता है। आक की जड का चूर्ण का धूँआ पीकर उपर से बाद में दूध गुड पीने से श्वास बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है।
–आक का दातून करने से दाँतों के रोग दूर होते हैं
–आक की जड का चूर्ण 1 माशा तक खाने से शरीर का शोथ (सूजन) अच्छा हो जाता है। —–आक की जड 5 तोला, असगंध 5 तोला, बीजबंध 5 तोला, सबका चूर्ण कर गुलाब के जल में खरल कर सुखावे इस प्रकार 3 दिन गुलाब के अर्क में घोटे बाद में इसका 1 माशा चूर्ण शहद के साथ चाट कर उपर से दूध पीवे तो प्रमेह रोग जल्दी अच्छा हो जाता है।
–आक की जड की काढे में सुहागा भिगो कर आग पर फुला ले मात्रा 1 रत्ती 4 रत्ती तक यह 1 सेर दूध को पचा देता है। जिनको दूध नहीं पचता वे इसे सेवन कर दूध खूब हजम कर सकते हैं।
–आक की पत्ती और चौथाई सेंधा नमक एक में कूट कर हण्डी में रख कर कपरौटी आग में फूँक दे। बाद में निकाल कर चूर्ण कर शहद या पानी के साथ 1 माशा तक सेवन करने से खाँसी, दमा, प्लीहा रोग शाँत हो जाता है।
–आक का दूध लगाने से ऊँगलियों का सडना दूर होता है।
— अगर किसी को चलती गाडी में उलटी आती हो ( motion sickness ) तो यात्रा पर निकलतेसमय जो स्वर चल रहा हो अर्थात जिस तरफ की श्वास ज़्यादा चल रही हो उस पैर के नीचे आक के पत्ते रखे . यात्रा के दौरान कोई तकलीफ नहीं होगी .
_ आक के पीले पड़े पत्तों को घी में गर्म कर उसका रस कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है .
_ आक का दूध कभी भी सीधे आँखों पर नहीं लगाना चाहिए . अगर दाई आँख दुःख रही हो तो बाए पैर के नाख़ून और बाई आँख दुःख रही हो तो दाए पैर के नाखूनों को आक के दूध से तर कर दे .
_ रुई को आक के दूध औरथोड़े से घी में भिगोकर दांत में रखने से दांतों का दर्द ठीक हो जाता है .
_ हिलते हुए दांत पर आक का दूध लगाकर आसानी से निकाला जा सकता है .
_ पीले पड़े आक के पत्तों के रस का नस्य लेने से आधा शीशी में लाभ होता है .
_ आक की कोपल को सुबह खाली पेट पान के पत्ते में रख चबा कर खाने से ३ से 5 दिनों में पीलिया ठीक हो जाता है .
_ सफ़ेद आक की छाया में सुखी जड़ को पीस कर १-२ ग्राम की मात्रा गाय के दूध के साथ लेने से बाँझपन ठीक होता है . बंद ट्यूब और नाड़ियाँ खुल जाती है ; मासिक धर्म गर्भाशय की गांठों में लाभ होता है .
_ गठिया में आक के पत्तों को घी लगा कर तवे पर गर्म कर सेकें .
_ आक की रुई को वस्त्रों में भर , रजाई तकिये में इस्तेमाल करने से वात रोगों में लाभ मिलता है .
_ कोई घाव अगर भर ना रहा हो तो आक की रुई उसमे भर दे और रोज़ बदल दे .
_ आक के दूध में सामान मात्रा में शहद मिला कर लगाने से दाद में लाभ होता है .आक की जड़ के चूर्ण को दही में मिलाकर लगाना भी दादमें लाभकारी होता है.
_ आक के पुष्प तोड़ने पर जो दूध निकलता है उसे नारियल तेल में मिलाकर लगाने से खाजदूर होती है .इसके दूध को कडवे तेल में मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है .
_ इसके पत्तों को सुखाकर उसकी पावडर जख्मों पर बुरकने से दूषित मांस दूर हो कर स्वस्थ मांस पैदाहोता है .
_ आक की मिटटी की टिकिया कीड़े पड़े हुए जख्मों पर बाँधने से कीड़े टिकिया पर आ कर मर जाते है और जख्म धीरे धीरे ठीक हो जाता है .
_ आक के दूध के शहद के साथ सेवन करने से कुष्ठ रोग ठीक होता है .आक के पुष्पों का चूर्ण भी इसमें लाभकारी है .
_ पेट में दर्द होने पर आक के पत्तों पर घी लगा कर गर्म कर सेके .
_ स्थावर विष पर २-३ ग्राम आक की जड़ को घिस कर दिन में ३-४ बार पिलाए .आक की लकड़ी का 6 ग्राम कोयला मिश्री के साथ लेने से शरीर में जमा पारा भी पेशाब के रास्ते निकल जाताहै .
_ आक और भी कई रोगों का इलाज करता है पर ये सभी योग वैद्य की सलाह से ही लेने चाहिए .

तुलसी के बीज का औषधीय उपयोग

जब भी तुलसी में खूब फूल यानी मञ्जरी लग जाए तो उन्हें पकने पर तोड़ लेना चाहिए वरना तुलसी के पौधे में चीटियाँ और कीड़ें लग जाते है और उसे समाप्त कर देते है |इन पकी हुई मञ्जरियों को रख ले , इनमे से काले काले बीज अलग होंगे उसे एकत्र कर ले , इसे सब्जा कहते है | अगर आपके घर में तुलसी के पौधे नही है तो बाजार में पंसारी या आयुर्वैदिक दवाईयो की दुकान से भी तुलसी के बीज ले सकते हैं वहाँ पर भी ये आसानी से मिल जाएंगे |
शीघ्र पतन एवं वीर्य की कमी —- तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से समस्या दूर होती है
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नपुंसकता—- तुलसी के बीज 5 ग्रBाम रोजाVनाH रात को गर्म दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है।

मासिक धर्म में अनियमियता—— जिस दिन मासिक आए उस दिन से जब तक मासिक रहे उस दिन तक तुलसी के बीज 5-5 ग्राम सुबह और शाम पानी या दूध के साथ लेने से मासिक की समस्या ठीक होती है और जिन महिलाओ को गर्भधारण में समस्या है वो भी ठीक होती है

तुलसी के पत्ते गर्म तासीर के होते है पर सब्जा शीतल होता है . इसे फालूदा में इस्तेमाल किया जाता है . इसे भिगाने से यह जैली की तरह फूल जाता है . इसे हम दूध या लस्सी के साथ थोड़ी देशी गुलाब की पंखुड़ियां डाल कर ले तो गर्मी में बहुत ठंडक देता है .इसके अलावा यह पाचन सम्बन्धी गड़बड़ी को भी दूर करता है तथा यह पित्त घटाता है |
ये त्रिदोषनाशक व क्षुधावर्धक है |
* तुलसी चटपटी, कड़वी अग्निदीपक, हृदय को हितकारी गरम, दाह, पित्त, वृद्धिकर, मूत्रकृच्छ, कोढ़, रक्तविकार, पसली-पीड़ा तथा कफ वातनाशक है। पाश्चात्य मतानुसार श्वेत तुलसी उष्ण, पाचक एवं बालकों के प्रतिश्याय व कफ रोग में कार्यान्वित होता है। काली तुलसी शीत, स्निग्ध, कफ एवं ज्वरनाशक है। फुसफुस के अन्दर से कफ निकालने के लिए काली मिर्च के साथ तुलसी के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। तुलसी रोगाणुनाशक पौधा है। प्राय: सभी हिन्दू घरों में यह मिलता है और इसकी पूजा होती है।

* केवल क्षय और मलेरिया के कीटाणु ही तुलसी की गंध से समाप्त नहीं हो जाते, अन्य रोगों के कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं। कुछ वर्ष पूर्व मलाया में मलेरिया की अधिकता को देखकर वहां की सरकार ने पार्कों में वनों में खाली जमीन जहां भी थी वहां तुलसी के पौधे रोपने का एक जोरदार अभियान चलाया था। उसके परिणामस्वरूप महामारी के रूप में कुख्यात मलेरिया धीरे-धीरे कम होते हुए अब बिलकुल समाप्त हो गया है। वहां के निवासी तुलसी के गुणों से भली-भांति परिचित हो चुके हैं। आज उनके घरों में तुलसी के एक-दो नहीं कई-कई पौधे लहलहाते दिखाई देते हैं।

* अनेक होमियोपैथिक दवाइयां तुलसी के रस से तैयार की जाती हैं। मेटेरिया मेडिका में तुलसी के अनेक गुणों का उल्लेख किया गया है।

* हमारे दैनिक जीवन में तुलसी का बहुत ही व्यापक उपयोग है। घर में हम अन्य फूलदार पौधे गमलों में लगाते हैं क्योंकि हर घर में कच्ची जमीन नहीं होती। हमें गमलों में तुलसी के भी दो-चार पौधे लगाने चाहिए। हालांकि जमीन में तुलसी का पौधा जिस तेजी से पनपता और विकसित होता है गमले में नहीं हो पाता। लेकिन इससे उसके गुणों में कोई अन्तर नहीं आता।

* तुलसी का सेवन करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। तुलसी का उपयोग करने के तत्काल बाद दूध नहीं पीना चाहिए। उससे कई रोग पैदा हो जाते हैं। अनेक आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन दूध के साथ बताया गया है लेकिन तुलसी का सेवन गंगाजल, शहद या फिर सामान्य पानी के साथ बताया गया है।
आयुर्वेद के मतानुसार, यदि कार्तिक मास में प्रातःकाल निराहार तुलसी के कुछ पत्तों का सेवन किया जाए तो मनुष्य वर्ष भर रोगों से सुरक्षित रहता है।

* तुलसी के सेवन का मनुष्य के चरित्र पर गहरा प्रभाव पड़ता है। तुलसी के सेवन से विचार शुद्ध और पवित्र रहते हैं। आध्यात्मिक विचार उत्पन्न होते हैं। वासना की ओर मन आकृष्ट नहीं हो पाता। मन में न तो वासनात्मक विचार उत्पन्न होते हैं न क्रोध आता है। तुलसी के नियमित सेवन से शरीर में चुस्ती-फुर्ती पैदा होती है। चेहरा कान्तिपूर्ण बन जाता है।
तुलसी रक्त विकार का सबसे बड़ा शत्रु है। रक्त में किसी भी कारण से विकार उत्पन्न हो गए हों, धोखे या जानबूझकर खा लेने पर विष रक्त में घुलमिल गया हो, तुलसी के नियमित प्रयोग से वह विष रक्त से निकल जाता है।
तुलसी के पौधे आंखों की ज्योति और मन को शान्ति प्रदान करते हैं। वातावरण में सात्विकता की सृष्टि करते हैं। तुलसी हृदय को सात्विक बनाती है। मन, वचन और कर्म से पवित्र रहने की प्रेरणा के लिए तुलसी प्रयोग की जाती है।
जीवन की सफलता मन की एकाग्रता पर बहुत कुछ निर्भर करती है। यदि मन एकाग्र न हो तो मनुष्य न तो भजन, पूजन, आराधना और चिन्तन-मनन कर सकता है न ही अध्ययन कर सकता है।
* भारतीय चिकित्सा विज्ञान (आयुर्वेद) का सबसे प्राचीन और मान्य ग्रंथ चरक संहिता में तुलसी के गुणों का वर्णन करते हुए कहा गया है-

हिक्काल विषश्वास पार्श्व शूल विनाशिनः।
पितकृतात्कफवातघ्र सुरसः पूर्ति गंधहा।।

अर्थात् तुलसी हिचकी, खांसी, विष विकार, पसली के दाह को मिटाने वाली होती है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित कफ तथा वायु का शमन होता है। भाव प्रकाश में तुलसी को रोगनाशक, हृदयोष्णा, दाहिपितकृत शक्तियों के सम्बन्ध में लिखा है।

तुलसी कटुका तिक्ता हृदयोष्णा दाहिपितकृत।
दीपना कष्टकृच्छ् स्त्रार्श्व रुककफवातेजित।।
अर्थात् तुलसी कटु, तिक्त, हृदय के लिए हितकर, त्वचा के रोगों में लाभदायक, पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली मूत्रकृच्छ के कष्ट को मिटाने वाली होती है। यह कफ और वात सम्बन्धी विकारों को ठीक करती है।

धन्वंतरि निघुंट में कहा गया है-

तुलसी लघु उष्णाच्य रूक्ष कफ विनाशिनी।
क्रिमिमदोषं निहंत्यैषा रुचि वृद्वंहिदीपनी।।

तुलसी, हल्की, उष्ण रूक्ष, कफ दोषों और कृमि दोषों को मिटाने वाली अग्नि दीपक होती है।
* सामान्यतः तुलसी के दो ही भेद जाने जाते हैं जिन्हें रामा और श्यामा कहते हैं। रामा के पत्तों का रंग हलका होता है जिससे उसका नाम गौरी पड़ गया है। श्यामा अथवा कृष्णा तुलसी के पत्तों का रंग गहरा होता है और उसमें कफनाशक गुण अधिक होता है। इसलिए औषधि के रूप में प्रायः कृष्णा तुलसी का ही प्रयोग किया जाता है। इसकी गंध व रस में तीक्ष्णता होती है। तुलसी की अन्य कई प्रजातियाँ होती हैं। एक प्रजाति ‘वन तुलसी’ है जिसे ‘कठेरक’ भी कहते हैं। इसकी गंध घरेलू तुलसी की अपेक्षा कम होती है और इसमें विष का प्रभाव नष्ट करने की क्षमता होती है। रक्त दोष, नेत्रविकार, प्रसवकालीन रोगों की चिकित्सा में यह विशेष उपयोगी होती है। दूसरी जाति को ‘मरुवक’ कहते हैं। राजा मार्तण्ड ग्रन्थ में इसके लाभों की जानकारी देते हुए लिखा गया है कि हथियार से कट जाने या रगड़ लगकर घाव हो जाने पर इसका रस लाभकारी होता है। किसी विषैले जीव के डंक मार देने पर भी इसका रस लाभकारी होता है। तीसरी जाति बर्बरी या बुबई तुलसी की होती है, इसकी मंजरी की गंध अधिक तेज होती है। इसके बीज अत्यधिक वाजीकरण माने गए हैं।

* अनेक हकीमी नुस्खों में इनका प्रयोग होता है। वीर्य की वृद्धि करने व पतलापन दूर करने के लिए बर्बरी जाति की तुलसी के बीजों का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा तुलसी की एक कृमिनाशक जाति भी होती है।

जैसा नाम वैसा गुण:–

तुलसी के कई नाम हैं जो इसके गुणों का इतिहास बताते हैं। वेदों, औषधि-विज्ञान के ग्रंथों और पुराणों में इसके कुछ प्रमुख नाम-गुण इस प्रकार हैं-

* कायस्था--क्योंकि यह काया को स्थिर रखती है।
* तीव्रा–क्योंकि यह तीव्रता से असर करती है।
* देव-दुन्दुभि–इसमें देव-गुणों का निवास होता है।
* दैत्यघि- -रोग-रूपी दैत्यों का संहार करती है।
* पावनी- -मन, वाणी और कर्म से पवित्र करती है।
* पूतपत्री- -इसके पत्र (पत्ते) पूत (पवित्र) कर देते हैं।
* सरला-– हर कोई आसानी से प्राप्त कर सकता है।
* सुभगा- -महिलाओं के यौनांग निर्मल-पुष्ट बनाती है।
* सुरसा-– यह अपने रस (लालारस) से ग्रन्थियों को सचेतन करती है।

शोभा, सुगन्धि और पवित्रता की प्रतीक है ये —

तुलसी का पौधा जिस आंगन में लहलहाता है, उसकी शोभा और सुगन्धि में पवित्रता होती है। महिलाएं अपना चरित्र तुलसी-जैसा बनाने में ही अपना जीवन सार्थक मानती हैं।

इसीलिए विनम्र भाव से वे कहती हैं- ‘‘मैं तुलसी तेरे आंगन की।’’

तुलसी का माहात्म्य:–

1 यह मन में बुरे विचार नहीं आने देती।
2 रक्त-विकार शान्त करती है।
3 त्वचा और छूत के रोग नहीं होने देती।
4 तुलसी की कंठी माला कंठ रोगों से बचाती है।
5 कामोत्तेजना नहीं होने देती, नपुंसक भी नहीं बनाती।
6 तुलसी-दल चबाने वाले के दांतों को कीड़ा नहीं लगता।
7 तुलसी के सेवक को क्रोध कम आता है।
8 तुलसी की माला, कंठी, गजरा और करधनी पहनना शरीर को निर्मल, रोगमुक्त और सात्विक बनाता है।
9 कार्तिक महीने में जो तुलसी का सेवन करता है, उसे साल भर तक डॉक्टर-वैद्य, हकीम के पास जाने की जरूरत नहीं पड़तीं।
10 तुलसी को अंधेरे में तोड़ने से शरीर में विकार आ सकते हैं क्योंकि अंधकार में इसकी विद्युत लहरें प्रखर हो जाती हैं।
11 तुलसी का सेवन करने के बाद दूध न पीएं। इससे चर्म-रोग हो सकते हैं।
12 कार्तिक महीने में यदि तुलसी-दल या तुलसी-रस ले चुकें हों तो उसके बाद पान न खाएं। ये दोनों गर्म हैं और कार्तिक में रक्त-संचार भी प्रबलता से होता है, इसलिए तुलसी के बाद पान खाने से परेशानी में पड़ सकते हैं।
13 तुलसी-दल के जल से स्नान करके कोढ़ नहीं होता।
14 सूर्य-चन्द्र ग्रहण के दौरान अन्न-सब्जी में तुलसी-दल इसलिए रखा जाता है कि सौरमण्डल की विनाशक गैसों से खाद्यान्न दूषित न हो।
15 जीरे के स्थान पर पुलाव आदि में तुलसी रस के छींटे देने से पौष्टिकता और महक में दस गुना वृद्धि हो जाती है।
16 तेजपात की जगह शाक-सब्जी आदि में तुलसी-दल डालने से मुखड़े पर आभा, आंखों में रोशनी और वाणी में तेजस्विता आती है।
17 तेल, साबुन, क्रीम और उबटन में तुलसी, दल और तुलसी रस का उपयोग, तन-बदन को निरोग, सुवासित, चैतन्य और कांतिमय बनाता है।
18 स्वभाव में सात्विकता लाने वाला केवल यही पौधा है।
19 तुलसी केवल शाखा-पत्तों का ढेर नहीं, आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है।
20 तुलसी के आगे खड़े होकर पढ़ने, विचारने दी
20 तुलसी के आगे खड़े होकर पढ़ने, विचारने दीप जलाने और पौधे की परिक्रमा करने से दसों इन्द्रियों के विकार दूर होकर मानसिक चेतना मिलती है।

सामान्य ज्वर:-

इसमें शरीर का तापमान 102-103 डिग्री हो जाता है। बेचैनी, शरीर में दर्द, प्यास का अधिक लगना, सिर-हाथ-पैरों में पीड़ा।
गर्मी या धूप में अधिक घूमना, थकावट, पेट में दर्द, सर्दी-गर्मी के प्रभाव से यह रोग हो सकता है। दस तुलसी के पत्ते, बीस काली मिर्च, पांच लौंग, थोड़ी-सी सोंठ पीसकर ढाई सौ मिलीलीटर पानी में उबाल लें और शक्कर मिलाकर रोगी को पिला दें। अगर रोगी को ज्वर के कारण घबराहट महसूस होती हो तो तुलसी के रस में शक्कर डालकर शरबत बना लें और रोगी को पिला दें। शीघ्र आराम मिलता है।

मौसमी बुखार:-

* बरसात या मौसम बदलने से रक्त संचार पर भला-बुरा असर पड़ता ही है और ज्वर के रूप में हमारे अंदर घंटी बजा देता है। तुलसी की दस ग्राम जड़ लेकर पानी में उबालिए और पी जाइए दो-तीन दिन सुबह-शाम इस उपचार से रक्त-साफ स्वच्छ हो जाएगा।

पुराना बुखार:-

* पुराना बुखार हो तो फेफड़े कमजोर होने लगते हैं, खांसी उठती रहती है, छाती में दर्द भी होता है।

तुलसी रस में मिश्री घोलकर तीन-तीन घंटे बाद तीन दिन तक पिलाए। ज्वर भी उतर जाएगा और खांसी व दर्द भी जाते रहेंगे।

सर्दी बुखार:-

* पांच तुलसी-दल और पांच काली मिर्च पानी में पीसकर पिलाएं। तुलसी-मिर्च का वह चूर्ण ढाई सौ ग्राम पानी में उबालकर पिलाने से तुरन्त असर होता है। आधे-आधे घंटे बाद दो बडे़ चम्मच पिलाते रहने से निश्चित लाभ होता है।

खांसी बुखार:-

* दस ग्राम तुलसी-रस, बीस ग्राम शहद और पांच ग्राम अदरक का रस मिलाकर एक बड़ा चम्मच भर कर पिला दें। अद्भुत योग है, आजमाकर देख लें।

* ग्यारह पत्ते तुलसी और ग्यारह दाने काली मिर्च, दोनों को पानी में पीसकर छान लें। इधर आग पर मिट्टी का खाली सकोरा पकाकर लाल कर दें और उसमें तुलसी काली मिर्च का घोल छौंक दें। यह घोल गुनगुना रह जाने पर काला नमक मिलाकर पिला दें। खांसी बुखार समूल निकल भागेंगे।
* दो ग्राम तुलसी पत्ते, दो ग्राम अजवायन पीसकर पचास ग्राम पानी में घोलकर पिला दें। सुबह-शाम पिलाएं।

मलेरिया:-

* तुलसी का रस, मंजरी, तुलसी-माला, तुलसी के पौधे और तुलसी-बीज मलेरिया को काटकर फेंक देते हैं। तुलसी-रस दस ग्राम और पिसी काली मिर्च एक ग्राम मिलाकर रोगी को दिन में पांच-छह बार दो-दो घंटे बाद पिलाते रहें। परेशानी से बचना चाहें तो तुलसी के दो सौ ग्राम रस में सौ ग्राम काली मिर्च मिलाकर रख दें। सुबह-दोपहर-शाम एक-एक चम्मच पिलाएं।

पुराना मलेरिया:-

* सात तुलसी-दल और सात काली मिर्च दोनों दाढ़ के नीचे रखकर चूसते रहें दिन में तीन-चार बार यही प्रक्रिया दोहराने से महीनों पुराना मलेरिया भी भाग जाएगा।

लगातार बुखार रहना:-

* जलकुम्भी के फूल, काली मिर्च और तुलसी-दल, तीनों समान मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें और प्रातः-सायं पिलाएं।

* तुलसी-दल दस ग्राम लेकर पांच दाने काली मिर्च के साथ घोट लें और दिन में तीन बार सेवन कराएं। आन्तरिक सफाई होते ही बुखार का नामोनिशान भी नहीं रहेगा।

सन्निपात:-

* ज्वर इतने जोर का बढ़ जाए कि आदमी बड़बड़ाने लगे, ऐसी स्थिति में तुलसी, बेल (बिल्व) और पीपल के पत्तों का काढ़ा उबालें। जब पानी ढाई-तीन सौ ग्राम बच जाए तो शीशी में भर लें। दस-दस ग्राम दो-दो घंटे बाद रोगी का पिलाते रहें। निश्चित ही लाभ होगा।

लू लगना:-

* एक चम्मच तुलसी-रस में देशी शक्कर मिलाकर एक-एक घंटे बाद देते रहें। यह न समझें कि तुलसी-रस गर्म होने से हानि पहुंचाएगा। संजीवनी शक्ति जिस कन्दमूल में भी होगी, वह गर्म ही होगा। आराम आने के बाद भी धूप में निकलना हो तो तुलसी रस में नमक मिलाकर पीएं इससे लू लगने की आशंका ही नहीं रहेगी। प्यास भी कम लगेगी और चक्कर भी नहीं आएंगे।

टूटा-टूटा बदन:-

* उपचार-तुलसी दल की चाय बनाकर पीएं आपके बदन में ताजगी की लहरें दौड़ने लगेंगी। घर में अगर चाय की पत्ती की जगह तुलसी दल सुखाकर रख लें तो कफ, सर्दी, जुकाम, थकान और बुखार या सिर-दर्द पास भी नहीं फटकेंगे।

श्वसन संस्थान के रोग:-

* प्रदूषण के साथ ही दिनचर्या व खानपान का अव्यवस्थित होना मुख्य रूप से फेफड़ों से संबंधित रोगों के कारण है। बिना किसी पूर्व योजना के बने फ्लैट्स और मकानों में खुली हवा के न होने से भी फेफड़े रोगग्रस्त होते हैं।

जुकाम:-

* छोटी इलायची के कुल दो दाने और एक ग्राम तुलसी बौर (मंजरी) डालकर काढ़ा बनाएं और चाय की तरह दूध-चीनी डालकर पिला दें। दिन में चार-पांच बार भी पिला देंगे तो खुश्की नहीं करेगी, मगर सर्दी-जुकाम को जड़ से ही गायब कर देगी।

* तुलसी के पत्ते छः ग्राम सोंठ और छोटी इलायची छः-छः ग्राम, दालचीनी एक ग्राम पीसकर चाय की तरह उबाल लें। थोड़ी-सी शक्कर डाल लें।
* तुलसी के पत्ते छः ग्राम सोंठ और छोटी इलायची छः-छः ग्राम, दालचीनी एक ग्राम पीसकर चाय की तरह उबाल लें। थोड़ी-सी शक्कर डाल लें। दिन में इस चाय का चार बार बनाकर पीएं। कुछ खाएं नहीं जुकाम कैसा भी हो ठीक हो जाएगा।
यदि जुकाम के साथ बुखार भी हो तो चाय के अलावा तुलसी के पत्तों का रस निकालकर उसमें शहद मिलाकर दिन में चार बार सेवन करें। जुकाम के कारण होने वाला ज्वर शान्त हो जाएगा।

* दालचीनीं, सोंठ और छोटी इलायची, कुल एक ग्राम, तुलसी-दल, छह ग्राम, इन्हें पीसकर चाय बनाएं और पीएं। दिन में ऐसी चाय चार बार भी ले सकते हैं। उस रात पेट भरकर खाना न खाएं। अगली सुबह आराम आ जाएगा।

शीघ्र पतन एवं वीर्य की कमी:-

* तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से समस्या दूर होती है।

नपुंसकता:–

* तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में बढोतरि होती है।

मासिक धर्म में अनियमियता:-

* जिस दिन मासिक आए उस दिन से जब तक मासिक रहे उस दिन तक तुलसी के बीज 5-5 ग्राम सुबह और शाम पानी या दूध के साथ लेने से मासिक की समस्या ठीक होती है और जिन महिलाओ को गर्भधारण में समस्या है वो भी ठीक होती है

* तुलसी के पत्ते गर्म तासीर के होते है पर सब्जा शीतल होता है . इसे फालूदा में इस्तेमाल किया जाता है . इसे भिगाने से यह जेली की तरह फुल जाता है . इसे हम दूध या लस्सी के साथ थोड़ी देशी गुलाब की पंखुड़ियां दाल कर ले तो गर्मी में बहुत ठंडक देता है .इसके अलावा यह पाचन सम्बन्धी गड़बड़ी को भी दूर करता है .यह पित्त घटाता है ये त्रीदोषनाशक , क्षुधावर्धक है ।